Tuesday, April 7, 2020

नित्य पठनीय मंत्र daily reciting Mantra

नित्य पठनीय मंत्र daily reciting Mantra
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नित्य पठनीय मंत्र daily reciting Mantra


कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती |
कर मूले तू गोविंदा, प्रभाते कर दर्शनं ||

समुद्र वसने देवि, पर्वतस्तन मंडले |
विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद्स्पर्शम् क्षमस्व में ||

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानु:शशी भुमिसुतौ बुधश्च |
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः, सर्वे ग्रह: शान्तिकरा भवन्तु ||

पृथ्वी सगन्धा सरसा स्ववापः, स्पर्शीच वायुज्वलनं च तेजः |
नभः सशब्द महता सहैव, कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ||

म्हेंद्रोमलयः सहयो,हह देवतात्मा हिमालयः |
ध्येयोरेवतको विन्ध्यो, गिरिश्चारावलिस्तथा ||

गंगा सिन्धुश्च कावेरी, यमुना च सरस्वती |
रेवा महानदी गोदा, ब्रह्मपुत्र:पुनातुमाम् ||

अयोध्या मथुरा माया, काशी कांची अवंतिका |
पूरी द्वारावतीचैव, सप्तैता मोक्ष दायिका: ||

प्रयागं पाटलिपुत्रम्, विजयानगरम् पुरीम् |
इन्द्रप्रस्थम् गयां चैव, प्रत्यूषे प्रत्यहं स्मरेत् ||

अरुन्धत्यनसूया च, सावित्री जानकी सती |
तेजस्विनी च पांचाली, वंदनीया निरंतरम् ||

लक्ष्मीरहिल्या चन्नम्मा मीरा दुर्गावती तथा |
कणग्गी च महासाध्वी, शारदाच निवेदिता ||

वैन्यम् पृथुम् हैह्यम् अर्जुनम् च, शाकुंतलेय भरतं नलम् च |
रामम् चयोवैस्मरति प्रभाते, तस्यार्थलाभो विजयश्च हस्ते ||

सनत्कुमार: सनक: सन्दन: सनात्नोप्याsसुरिपिंलग्लौ च।
सप्त स्वरा: सप्त रसातलनि कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम॥



ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षग्वम् शान्ति:पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय:
शान्ति: वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:सर्वग्वम्
शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
हिन्दी भावार्थ: सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!

ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्‌विषावहै॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥