Monday, May 14, 2012

Tum samay ki ret par chhodte chalo nishan









तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशान, 
देखती तुम्हें ज़मीन देखता है आसमां
लिखते चलो नौजवान नित नयी कहानियाँ, 
तुम मिटा दो ठोकरों से ज़ुल्म की निशानियाँ
     कल की तुम मशाल हो सबसे बेमिसाल हो,

     तिनके तिनके को बनादो ज़िन्दगी का आशियाँ
तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशान, 

देखती तुम्हें ज़मीन देखता है आसमां
     ये निशान एक दिन जहान का अमन बने, 

     ये निशान एक दिन प्रीत का चमन बने
     हँसते हुए हमसफ़र गाते चलें हो निडर, 

     आगे आगे बढता चले ज़िन्दगी का कारवां
तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशान, 

देखती तुम्हें ज़मीन देखता है आसमां
     तुम जिधर चलो उधर रास्ता बने नया, 

     एक उठाये सबका बोझ वक़्त वो चला गया
     सब कमायें साथ साथ काम करें सबके हाथ, 

     जो भी आगे बढ़ रहा है देखता उसे जहां
तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशान, 

देखती तुम्हें ज़मीन देखता है आसमां


2 comments:

  1. Very nice poem, it inspired me very much and the best part is there is nothing complex, every thing is clear like water and it is very much practical.

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